वेदों में ऋषियों द्वारा दृष्ट मंत्रों का संकलन है।
यह बहुत विशाल है।
कुछ मंत्र छन्दोबद्ध तथा कुछ गद्यात्मक हैं।
छन्दोबद्ध मंत्रों को 'ऋक्' कहा जाता है।
‘ऋक्’ को ऋचा भी कहते हैं।
इन्हीं के द्वारा देवताओं की अर्चना की जाती है।
वेद चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
जिस वेद में ऋचाओं का संकलन है उसे ऋग्वेद कहा गया है।
ये ही मंत्र जब गाए जाते हैं तब उन्हें 'साम' कहा जाता है और 'सामों का संकलन ‘सामवेद' कहलाता है।
गद्य-प्रधान वेद को ‘यजुर्वेद' जो यज्ञों के लिए प्रयुक्त होता है।
स्तवन, गायन और यजन इन तीन प्रमुख विषयों के कारण क्रमशः ऋग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद का विभाजन किया गया।
ये संयुक्त रूप से वेदत्रयी कहलाते हैं।
जिन मंत्रों का संग्रह अथर्व ऋषि ने किया वे अथर्ववेद के नाम से जाने गए।
ऋग्वेद सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तथा विशाल है।
इसके मंत्रों में 'गायत्री मंत्र' व्यापक रूप से जाना जाता है-
“ ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।”