गुरु ‘उपनिषद्' शब्द उप + नि + सद् धातु से बना है- जिसका अर्थ होता है
के समीप बैठकर ब्रह्मविद्या रूपी प्रकाश से अपने अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करना।
उपनिषद् गुरु शिष्य परंपरा के आदर्श उदाहरण हैं।
उपनिषद् ही समस्त भारतीय दर्शनों का मूल स्रोत है।
उपनिषद् में गुरु और शिष्य के बीच बहुत ही सुंदर और गूढ़ संवाद है, जो पाठक को ब्रह्म आत्मा के मर्म तक पहुँचाता है।
वेदों में जटिलता से कही गई बातों को उननिषदों में सरल ढंग से समझाया गया है।
सामान्यतः उपनिषदों की संख्या 108 मानी जाती है पर इनमें से प्रमुख
दस हैं - ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य और वृहदारण्यक।
उदाहरण स्वरूप छान्दोग्योपनिषद् में कहा गया है,
“तत् त्वम् असि" 'तत्' अर्थात् वह (ब्रह्म), ‘त्वम्’ अर्थात् तुम (आत्मा) 'असि' अर्थात् हो।
अर्थात् गुरु शिष्य को बतलाता है कि वह और कोई नहीं बल्कि ब्रह्म ही है।
उपनिषद् के अनुसार यह संपूर्ण संसार ही ब्रह्म है।
उपनिषद् हिन्दुओं का एक प्रमुख धर्मग्रंथ है।
प्राचीन भारत की भाषा संस्कृत थी, अतः इनकी रचना संस्कृत में ही हुई ।