वेदव्यास की कथा

प्राचीन काल में पराशर नामक एक महर्षि थे।

उन्होंने मत्स्यगंधा (मछली की गंधवाली) नामक मछुआरिन से विवाह किया था।

उन दोनों का एक पुत्र हुआ। एक द्वीप पर उसका जन्म होने के कारण

उसका नाम कृष्ण द्वैपायन पड़ा था। वही बाद में 'वेदव्यास' कहलाए थे। वन

में तपस्या के लिए जाते समय महर्षि पराशर ने मत्स्यगंधा को आशीर्वाद देते हुए कहा था,

“प्रिय मत्स्यगंधा ! मैं सत्य की खोज में तपस्या करने जा रहा हूँ।

मैं प्रार्थना करूँगा कि तुम्हारी मछली की गंध समाप्त हो जाए और तुममें से ताजे कमल की सुगंध आए।

वह सुगंध दूर-दूर तक जाने के कारण लोग तुम्हें योजनगंधा (जिसकी गंध दूर तक जाती हो) बुलाएँगे।

हमारा पुत्र कृष्ण भविष्य में बहुत बड़ा विद्वान् बनेगा।"

महर्षि पराशर की बात सत्य हुई। उनके पुत्र कृष्ण की शास्त्रों में बहुत अधिक रुचि थी।

उन दिनों मात्र एक ही वेद था- अथर्व वेद।

कृष्ण द्वैपायन ने यह अनुभव किया कि कलियुग में जब अच्छाई पर बुराई हावी हो जाएगी तब वेद की गूढ़ता लोगों को समझ नहीं आएगी।

फलतः उन्होंने वेद को चार भागों में विभक्त कर दिया - ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।

वेदों का विस्तार करने के कारण कृष्ण द्वैपायन ‘वेदव्यास' कहलाने लगे।

उन्होंने ही महाभारत की रचना की थी।