बहुत समय पहले की बात है- महा-प्रलय से सम्पूर्ण सृष्टि का नाश हो गया था।
विष्णु भगवान आदिशेष पर विश्राम कर रहे थे।
आदिशक्ति देवी ने उन्हें जगाकर कहा, “प्रभु, आँखें खोलिए! सृष्टि की रचना का समय आ गया है...”
विष्णु भगवान ने धीरे से अपनी आँखें खोलकर अपनी नाभि की ओर देखा।
वहाँ स्वयंभू ब्रह्मा कमल पुष्प पर बैठे थे।
वे हाथ जोड़े हुए विष्णु को ही निहार रहे थे।
विष्णु भगवान ने कहा, “ब्रह्मा, कमल से आप सृष्टि की रचना करिए, जो शाश्वत हो...
उसका विलय तब तक न हो जब तक मैं स्वयं ही विलय न करूँ..."
ब्रह्मा ने तुरंत कमल के तीन भाग किए और स्वर्ग, पृथ्वी और आकाश का निर्माण किया।
फिर धरती को उन्होंने प्राकृतिक वनस्पतियों और जीवों से परिपूर्ण कर दिया।
इस रचना को देख विष्णु ने कहा, "ब्रह्मा, यह तो सुंदर है पर इन सबका ख्याल कौन रखेगा तथा कौन इन्हें भोगेगा?"
कुछ सोचते हुए ब्रह्मा ने कहा, “हूँऽऽऽ... अर्थात् मुझे स्वयं से प्राणियों की रचना करनी होगी...।"
ब्रह्मा ने
अपने शरीर के दो भागों में से एक से पुरूष और दूसरे से नारी की रचना की।