ध्रुव तपस्यारत हो गया

पिता द्वारा उपेक्षित ध्रुव दुःखी मन से घर लौट आया।

रोते हुए उसने अपनी माँ को सुरुचि की फटकार तथा पिता की उपेक्षा के बारे में बताया।

पुत्र की उपेक्षा की बात सुनकर सुनीति बहुत दु:खी हुई।

उसने ध्रुव को सांत्वना देते हुए कहा कि नारायण सब कुछ करने में समर्थ हैं।

वही सभी की सहायता करते हैं और सभी बुराइयों को भी दूर करते हैं।

अपनी माँ की बातों को सुनकर ध्रुव प्रसन्न हो गया।

उसके चेहरे पर शांति और दृढ़ निश्चय झलकने लगा।

नारायण में उसे अगाध श्रद्धा और विश्वास था।

उसने विष्णु भगवान की तपस्या करने का निश्चय किया।

अपने पुत्र के दृढ़ निश्चय को देखते हुए सुनीति ने उसे समझाया,

“पुत्र, यह इतना भी सरल नहीं है।”

पर दृढ़ निश्चयी ध्रुव ने अपनी माँ को चिंता नहीं करने की सलाह दी और उनकी अनुमति

तथा आशीर्वाद लेकर तपस्या करने के लिए घर छोड़कर चला गया।