राजा उत्तानपाद की दो पत्नियाँ थीं- सुनीति और सुरुचि।
पहली पत्नी सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था और दूसरी पत्नी सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था।
सुनीति एक कबीले के सरदार की पुत्री थी, जबकि सुरुचि के पिता एक धनवान राजा थे।
आगे चलकर राजा का बड़ा पुत्र ध्रुव ही राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा- इस सोच के कारण सुरुचि ध्रुव से ईर्ष्या करती थी।
राजा, सुरुचि को बहुत प्यार करते थे।
इसी बात का लाभ उठाकर उसने सुनीति और ध्रुव को महल से निकाल दिया।
राज्य के बाहर सुनीति ध्रुव के साथ एक झोंपड़ी में रहने लगी।
वह प्रतिदिन पुत्र ध्रुव को नारायण (भगवान विष्णु)
की कहानियाँ सुनाया करती थी।
एक दिन ध्रुव अपने पिता से मिलने महल गया।
वहाँ उसने उत्तम को अपने पिता की गोद में बैठा देखा।
ध्रुव ने भी अपने पिता से उनकी गोद में बैठने की आज्ञा माँगी।
सुरुचि ने उसे फटकारते हुए कहा, “केवल उत्तम ही अपने पिता की गोद में बैठने का अधिकारी है।
तुम तपस्या कर पहले मेरे पुत्र के रूप में जन्म लो, जिससे राज्य का उत्तराधिकारी बन अपने पिता की गोद में बैठ सको।”
ध्रुव को लगा था कि पिता को उससे सहानुभूति होगी पर राजा ने उसे अनदेखा कर दिया।