ध्रुव तारा की कथा

भूखा प्यासा ध्रुव बस नारायण के नाम को जपता हुआ दूर घने जंगल में जाकर तपस्या करने लगा।

कई दिनों के बाद उधर से जाते हुए नारद ने ध्रुव को नारायण के नाम का जप करते देखा । ध्रुव की बात सुनकर

उन्होंने उसे समझाते हुए कहा, “पुत्र, घर लौट जाओ। तुम जैसे नन्हे बालकों

के लिए जंगल सुरक्षित नहीं है।" यह सुनकर ध्रुव ने नारद से पूछा, “आप मुझे बताएँ कि मैं नारायण को कहाँ पा सकता हूँ?”

तब दृढ़ प्रतिज्ञ ध्रुव को नारद ने “ओऽम् नमो भगवते वासुदेवाय" का मंत्र दिया।

ध्रुव ने नारद मुनि को धन्यवाद दिया और उनके दिए मंत्र का जाप प्रारम्भ कर दिया।

कुछ दिनों के बाद ध्रुव एक पैर पर खड़ा होकर तपस्या करने लगा।

विष्णु भगवान उसकी तपस्या से प्रसन्न हो गए और उसके सामने प्रकट हो गए।

उन्हें देखकर ध्रुव अचंभित रह गया।

उसे कुछ भी याद नहीं रहा। विष्णु भगवान ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि पृथ्वी पर उसका जीवन समाप्त

होने के बाद भी वह ध्रुवतारा के रूप में जीवित रहेगा।

मृत्यु के पश्चात् ध्रुव 'ध्रुवतारा' बन गया।

आज भी वह सबसे चमकदार ध्रुवतारा के रूप में आकाश में स्थित है

और समुद्र में नाविकों का मार्गदर्शन करता है।