यज्ञ की महत्ता

एक बार इक्ष्वाकु वंश के राजा त्रयारुण युद्ध में विजयी होकर वापस अपने राज्य में आ रहे थे।

उनका प्रमुख सलाहकार और मंत्री वृष ही सारथी था।

राज्य की जनता अपने राजा के स्वागत में उमड़ पड़ी थी।

दुर्भाग्यवश उस भीड़ में एक नन्हा बालक रथ के नीचे आ गया।

दु:खी बालक की माँ ने रोते हुए कहा, “हे महाराज! आपने मेरे पुत्र को मार डाला.... श्राप के भय से राजा ने कहा, “हे माते !

इसमें मेरी गलती नहीं है...।

आप वृष को सज़ा दें...।" पर वृष ने “महाराज, रथ के चक्के के नीचे अचानक ही बालक आ

कहा,

गया... सारी ज़िम्मेदारी तो आपकी ही है।"

चर्चा हुई और वृष को राज्य से निकाल दिया गया।

इस घटना के पश्चात् राज्य में भीषण अकाल पड़ा।

राज पुरोहित ने सलाह दी, “महाराज, वृष को राज्य से निकालना न्यायपूर्ण नहीं था..

. उसे वापस बुला लेना चाहिए।" वृष को वापस बुलाया गया।

उसने कहा, “महाराज, मेरे जाने के बाद आपने यज्ञ करना बंद कर दिया था...

फलतः इन्द्र रुष्ट हो गए हैं।

" राजा ने कहा, “वृष, मैंने तुम्हें निकालकर अन्याय किया... यज्ञ की तैयारी करो।”

यज्ञ किया गया और राज्य में पर्याप्त वर्षा हुई।