वेद, पुराण, महाभारत और भगवद् गीता महर्षि वेद व्यास लिख चुके थे।
एक दिन शाम के समय वे सरस्वती नदी के किनारे बैठे थे।
तभी नारद ने आकर पूछा, “महर्षि व्यास, क्या बात है?
आप कुछ व्यग्र लग रहे हैं...।
" महर्षि ने कहा, “नारद, वेद पुराण, महाभारत लिखने के पश्चात् भी लगता है मानो मानवता के लिए कुछ छूट रहा है....
कलियुग में मोक्ष की प्राप्ति में लोगों को बहुत दुःख होगा..."
तब नारद जी ने कहा, “हूँऽऽ यह तो है...।
आपने अपने शास्त्रों में कर्मयोग की महत्ता तो बताई है,
किन्तु आपने नारायण की महिमा का लीला का, गुण का गान नहीं किया है...
उनकी महिमा को जानने के बाद ही लोग उनकी ओर आकृष्ट होंगे....
भक्ति उन्हें पाने का सरलतम मार्ग है...
जब आप उनकी महिमा का मंडन करेंगे तब आपको अवश्य शांति मिलेगी।
” नारद जी ने महर्षि व्यास को भगवद् लीला से परिपूर्ण एक ग्रंथ लिखने की
सलाह दी और लिखने से पहले भगवान की भक्ति भी करने के लिए कहा।
नारद की बातों से महर्षि व्यास प्रेरित हुए और उन्होंने 'श्रीमद् भागवत' की रचना की।