घोड़े के सिर वाले ऋषि

दधीची को ब्रह्मविद्या (अमर होने की विद्या) देकर इन्द्र ने कहा,

“दधीची, अपनी कठिन तपस्या के कारण तुमने ब्रह्मविद्या को प्राप्त किया है...

इसे अपने तक ही सीमित रखना अन्यथा तुम्हारा सिर धड़ से अलग हो जाएगा।”

अश्विनी कुमार तज्ञ चिकित्सक थे पर उन्हें ब्रह्मविद्या का ज्ञान नहीं था।

एक दिन वे दोनों दधीची से मिलने गए और उन्होंने प्रार्थना की, “कृपया आप हमें ब्रह्मविद्या सिखाएँ।

हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि आपको कुछ भी नहीं होगा।”

दधीची पहले तो हिचके पर फिर उन्होंने ब्रह्मविद्या अश्विनी कुमारों को दे दी।

ब्रह्मविद्या प्राप्त करने के बाद इन्द्र के भय के कारण उन्होंने ऋषि का सिर काटकर उसकी जगह घोड़े का सिर लगा दिया।

ब्रह्मविद्या का ज्ञान दधीची के द्वारा अश्विनी कुमारों को देने की बात का पता इन्द्र को चला।

क्रोध में आकर इन्द्र ने तुरंत अपना वज्र उन पर चला दिया।

फलतः दधीची का घोड़े का सिर कट गया। अश्विनी कुमारों ने दधीची

का सिर सुरक्षित रख रखा था उन्होंने तुरंत अपने ब्रह्मविद्या के ज्ञान से दधीची का असली

सिर पुनः लगाकर उन्हें जीवित कर दिया।