एक बार मनु के पुत्र राजा शर्याति अपनी पुत्री सुकन्या के साथ शिकार के लिए गए हुए थे।
अचानक सुकन्या ने एक ओर इशारा किया, “पिता जी, देखिए... चींटी की बाँबी में आँखें..." वस्तुतः च्यवन ऋषि तपस्या
में लीन बैठे थे। आँखों को छोड़कर उनका पूरा शरीर दीमक (सफ़ेद चींटियों) से ढँका
हुआ था। सहज चपलता वश सुकन्या ने एक छड़ी से उन्हें कोंचा ।
च्यवन रुष्ट हो गए। राजा ने हाथ जोड़कर उनसे विनती की, "हमें क्षमा कर दें... हे गुरुवर!
उसके बचकाने व्यवहार के लिए क्षमा करें..." च्यवन ऋषि ने कहा,
“क्षमा चाहते हो तो अपनी पुत्री का विवाह मेरे साथ कर दो।”
कुरूप तथा फोड़ों से भरपूर च्यवन के साथ पुत्री का विवाह करने में राजा संकोच करने लगे,
किन्तु सुकन्या ने उन्हें स्वीकार कर लिया।
एक दिन उनकी कुटिया के पास ही दिव्य चिकित्सक अश्विनी कुमार घूम रहे थे।
च्यवन की पत्नी के रूप में सुन्दर सुकन्या को देख उन्हें बहुत अचंभा हुआ।
उन्होंने कहा, “हे युवती! क्या तुम हममें से किसी एक से विवाह करोगी?
तुम रानी बनकर रहोगी ।
” सुकन्या ने मना करते हुए कहा, “सुंदर हों या बदसूरत, मेरे पति ही मेरे लिए मेरा सर्वस्व हैं...।
उनके ज्ञान और भक्ति के लिए मैं उनका आदर करती हूँ।”
सुकन्या की निष्ठा से प्रसन्न होकर अश्विनी कुमारों ने च्यवन के ज़ख्म ठीक कर दिए और दोनों को आशीर्वाद दिया।