महाद्वीप का उद्भव

एक बार स्वयंभू मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत ने देखा कि सूर्यदेव पृथ्वी के एक भाग को ही सदा प्रकाशित करते हैं,

दूसरा भाग अंधकार में ही रहता है।

उन्होंने रात को दिन बनाने का संकल्प लिया।

दिव्य शक्तियाँ होने के कारण प्रियव्रत ने कहा, “ धरती का एक हिस्सा प्रकाशित हो

और दूसरा अंधकार में... यह मैं नहीं देख सकता...।

मैं पूरी पृथ्वी को प्रकाशित करूँगा।

मैं दूसरा सूर्य बनकर, सूर्य की कक्षा में, रथ पर सवार होकर, उसी गति से जाऊँगा...।”

यह सोचकर सूर्य के समान तेजस्वी और वेगवान अपने रथ पर सवार होकर प्रियव्रत,

संसार के अंधकारमय भाग को प्रकाशित करने के लिए पृथ्वी की सात परिक्रमा कर गए।

रथ की सवारी करते समय रथ के पहिए से जो लकीरें बनीं वे ही सात समुद्र बन गए।

उन सात समुद्रों ने धरती को सात महाद्वीपों में विभक्त कर दिया।