धर्म का फल

गुरुकुल में अपनी शिक्षा पूरी करके मनु का दूसरा पुत्र नभानेदिष्ठ घर वापस लौटा।

उसने देखा कि उसके पिता ने अपनी संपत्ति का बँटवारा बाकी भाइयों में कर दिया था।

पूछने पर पिता मनु ने कहा, “तुम्हारे भाग्य में उच्च जीवन लिखा है...।

अब तुम जाओ और जाकर महर्षि अंगिरस की यज्ञ में सहायता करो।

नभानेदिष्ठ ने उनकी आज्ञा का पालन किया।

स्वर्ग प्राप्ति के लिए महर्षि अंगिरस यज्ञ कर रहे थे।

छठे दिन की क्रिया करते समय वह अटक गए।

नभानेदिष्ठ ने समय पर पहुँचकर उनकी सहायता की जिससे वे स्वर्ग जाने में सफल हो गए।

जाते समय उन्होंने एक हज़ार पशु पुरस्कार स्वरूप दिए।

घर आते समय नभानेदिष्ठ को रुद्र नामक काले रंग के जीव ने रोककर कहा, “अरे!

क्या तुम्हें यह पता नहीं कि यज्ञ की बची हुई वस्तु मेरी होती है...

अपने पिता से पूछ लो...।”

" मनु ने अपनी सहमति देते हुए कहा, “पुत्र, यह सच है।

शास्त्रों में यही लिखा है...।”

यह सुनकर नभानेदिष्ठ ने रुद्र को सभी पशु दे दिए।

रुद्र ने उसकी ईमानदारी से प्रसन्न होकर उसे सभी पशु वापस दे दिए।