वचन पालन में चूक

इक्ष्वाकु वंश के राजा हरिश्चन्द्र निःसंतान थे।

संतान के लिए उन्होंने वरुण देव से प्रार्थना की।

वरुण देव ने कहा, “यदि तुम यज्ञ करने का वादा करो तो मैं तुम्हें पुत्र प्रदान करूँगा।”

हरिश्चन्द्र नें उनकी बात मान ली और रोहित का जन्म हुआ पर राजा यज्ञ करना भूल गए।

रोहित के अठारह वर्ष के हो जाने पर हरिश्चन्द्र ने उससे कहा, “पुत्र, मैंने वरुण देव को यज्ञ के द्वारा तुष्ट करने का वादा किया था...।"

रोहित ने अनसुनी करते हुए कहा, “पिता जी, मैं तपस्या करने के लिए जंगल में जा रहा हूँ।"

रोहित के जाने के पश्चात् हरिश्चन्द्र पेट की किसी बीमारी से बीमार पड़ गए।

रोहित को सूचित किया गया।

इन्द्र ने एक साधारण नागरिक के रूप में रोहित से मिलकर पूछा, “ वत्स, तुम यज्ञ के लिए तैयार क्यों नहीं हुए?”

रोहित ने कहा, “मैं सांसारिक सुख नहीं चाहता हूँ... मेरी इच्छा तो परम सत्य को जानने की है...।"

"फिर तुम वापस क्यों आ रहे ने पुनः हो?”

“अपने बीमार पिता से मिलना मेरा कर्तव्य है । "

इन्द्र स्पष्ट करते हुए कहा, " वत्स, क्या तुम यह नहीं जानते कि अपने वचन को रखना भी प्रथम कर्तव्य है?

वैसा नहीं करने से ही तुम्हारे पिता अस्वस्थ हुए हैं।”

रोहित को अपनी भूल का भान हो गया।

उसने तुरंत यज्ञ का प्रबंध किया, वरुण का आह्वान कर उनका आशीर्वाद लिया।

तत्पश्चात् हरिश्चन्द्र स्वस्थ हो गए।