कई वर्षों के बाद, शूरसेन के राजा चित्रकेतु को अंगिरा ऋषि के वरदान से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
उनकी प्रसन्नता का ठिकाना न था।
परन्तु उनकी खुशी अधिक समय तक न रह सकी।
दुर्भाग्यवश पुत्र का देहान्त शीघ्र ही हो गया।
राजा और रानी का दुःख से हाल बेहाल था।
अंगिरा ऋषि ने उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा, “चित्रकेतु, जो शरीर नहीं रहा उससे मोह कैसा...?
आत्मा अमर है, वह सदा रहती है... यही जीवन का सत्य है..
चित्रकेतु ने कहा, “मैं ऐसा नहीं समझता हूँ...।”
अपनी शक्ति से अंगिरा ऋषि ने मृत पुत्र की आत्मा को बुलाकर आदेश दिया,
“वापस राजकुमार के शरीर में समा जाओ, तुम्हारे पास शासन करने के लिए राज्य है और आनंद मनाने के लिए समृद्धि है!”
आत्मा ने उत्तर दिया, “किसका शरीर? कैसा राज्य ?
मेरा कई बार जन्म हो चुका है और मैं कई शरीरों में रह चुका हूँ...।"
आत्मा की बात सुनकर चित्रकेतु और उनकी रानी सकते में आ गए।
अंततः जीवन और मृत्यु का सत्य उन्होंने स्वीकार कर लिया।