एक बार विद्वान् श्वकेतु पांचाल राज्य में मनीषियों की सभा में भाग लेने गया।
राजकुमार प्रवहण ने उनका सम्मान करने के बाद कहा,
“क्या आप बता सकते हैं कि जीव मृत्यु के पश्चात् कहाँ जाता है
और कैसे इस संसार में वापस आता है?"
श्वकेतु ने इस विषय में अपनी अनभिज्ञता प्रकट की।
प्रवहण ने पुनः पूछा, “क्या आप बता सकते हैं कि मृत्यु के पश्चात् भी जीवों से दूसरी दुनिया भरती क्यों नहीं है?”
“हूँऽऽ, श्रीमान्, मेरे पास इसका उत्तर नहीं है।”
“फिर श्रीमान्, आप कैसे कहते हैं कि आपकी शिक्षा पूर्ण हो गई है?"
वापस आकर श्वकेतु ने सारी घटना आरुणि को बतलाई।
आरुणि ने प्रवहण से जाकर कहा, “कृपा मुझे उन प्रश्नों के उत्तर बताएँ, जो आपने मेरे पुत्र से पूछे थे।"
एक क्षत्रिय होने के पश्चात् भी प्रवहण ब्राह्मण आरुणि को प्रबुद्ध करने के लिए राजी हो गया।
उसने कहा, “जिन लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है वे
प्रकाशयुक्त देवयान पथ लेकर ब्रह्म में विलीन हो जाते हैं जबकि
दूसरे पुनर्जन्म के चक्र में फँसकर
घूमते रहते हैं... क्योंकि वे परम सत्य को समझ ही नहीं पाते हैं...
इसी कारण परलोक कभी भरता नहीं है।”