बालकी का गर्व चूर

ऋषि गर्ग के वंशज बालकी नामक युवक को अपनी विद्वत्ता का बड़ा गर्व था।

राजकुमार अजातशत्रु ने उससे ब्रह्म के विषय में जानना चाहा।

बालकी ने कहा, “राजकुमार, सूर्य ही ब्रह्म है... वही परम सत्य है।

” अजातशत्रु ने खंडन करते हुए कहा, “सूर्य सभी भूतों के राजा हैं पर परम सत्य...!”

“ठीक है, तब निश्चित रूप से चन्द्र ही परम सत्य है" “कदापि नहीं, चाँद ब्रह्म नहीं है।"

“ठीक है, तब यह मानो कि जो हम सबके भीतर है वही ब्रह्म है और हमें उसे पूजना चाहिए।"

अजातशत्रु द्वारा इसे गलत साबित किए जाने पर बालकी ने कहा, “हे राजकुमार !

कृपा आप मुझे परम सत्य का ज्ञान दें..."

अजातशत्रु ने एक सोए हुए व्यक्ति को दिखाकर कहा,

“कभी सोचा है कि यह व्यक्ति निद्रा में कहाँ गया है?”

“क्यों नहीं, श्रीमान् ! यह व्यक्ति पूर्ण रूप से यहीं है.... और उसकी चेतना भी उसके भीतर है।"

असहमत अजातशत्रु

ने कहा, “ श्रीमान्, जिस व्यक्ति को आप यहाँ देख रहे हैं वह मात्र उसका शरीर है...

उसकी चेतना उसके हृदय में है।

स्वप्न की अवस्था में बुद्धि तरह-तरह की भूमिका निभाती है।

जागृत होने पर वह वापस लौट आती है और उसकी

इच्छा के अनुरूप काम करती है... उसी चेतना को हम आत्मा या ब्रह्म कहते हैं।