आत्म-ज्ञान

एक बार इन्द्र (देवताओं

राजा) और विरोचन (असुरों के राजा) ब्रह्मा जी के पास 'चैतन्य स्वरूप' के विषय में जानने के लिए गए।

ब्रह्मा जी ने कहा, “चैतन्य स्वरूप ही आपकी आँखों से बाह्य जगत को देखता है।

आप जाएँ और स्वयं को जल में देखकर इसे अनुभव करने की चेष्टा करें।"

इन्द्र और विरोचन जल में स्वयं को देखकर आश्चर्यचकित रह गए।

उन्होंने ब्रह्मा से जाकर कहा, “हे गुरुदेव! हमने देखा है कि हम कितने खूबसूरत हैं..."

ब्रह्मा जी ने मुस्कुराकर कहा, “हूँऽऽ... वही तुम्हारा चैतन्य स्वरूप है...”

खुशी-खुशी वापस जाकर विरोचन ने असुरों को अपने अर्जित ज्ञान के विषय में बताया।

किन्तु असंतुष्ट इन्द्र ने पुनः ब्रह्मा के पास जाकर इसे जानने का प्रयत्न किया।

ब्रह्मा ने कहा, “हूँऽऽ...

इन्द्र, चैतन्य स्वरूप कोई बाहरी वस्तु नहीं है...

उसका वास तुम्हारे भीतर ही है।

इच्छा पूर्ति के लिए आत्मा को समझा और अनुभव ही किया जा सकता है।”