ऋषि वाजश्रवा का नचिकेता नामक बहुत ही बुद्धिमान पुत्र था।
'विश्वजीत यज्ञ' के पश्चात्, कमज़ोर और बूढ़ी गायों को दान में दिया जाता देखकर उसने कारण जानना चाहा।
वाजश्रवा चिढ़ गए और झल्लाकर बोले, “जा, मैं तुझे यमराज को देता हूँ।"
नचिकेता ने यम से मिलने का निश्चय किया।
यमलोक जाकर वह तीन दिनों तक बाहर बैठा यम के लौटने की प्रतीक्षा करता रहा।
वापस आने पर यम ने कहा, “हे ऋषि कुमार!
मैं तुम्हारे धीरज की प्रशंसा करता हूँ... तीन वर माँगो!” नचिकेता ने कहा,
“पहला वरदान मेरे पिता के क्रोध को शांत करने का दें; दूसरा, मुझे कर्म और यज्ञ के विषय में बताएँ ।”
नचिकेता ने तीसरा वर माँगते हुए कहा, “हे यमदेव! मृत्यु के बाद मनुष्य का क्या होता है...
वह कहाँ जाता है... कृपा बताएँ।”
अचंभित यम ने कहा, “बालक, यह सब समझने की अभी तुम्हारी आयु नहीं हुई है।
इसके अतिरिक्त तुम स्वास्थ्य, संपदा, समृद्धि, दीर्घायु, राज-पाट माँग लो।"
नचिकेता दृढ़ निश्चयी था।
फलतः यम समझाया, "मनुष्य के भीतर स्थित चेतना ही आत्मा है...
यह चैतन्य स्वरूप न जन्म लेता है और न ही मरता है।
इसकी अनुभूति कर लेने से मनुष्य जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।"
यम का आभार प्रकट कर, एकांत में जाकर नचिकेता आत्मज्ञान की साधना में रत हो गया।