एक बार दुर्वासा ऋषि इन्द्र से मिलने गए।
साथ लाया हुआ हार उन्होंने इन्द्र के सम्मान में उन्हें पहना दिया।
पर इन्द्र ने उस हार को उतारकर अपने हाथी ऐरावत के गले में डाल दिया।
क्रुद्ध होकर दुर्वासा ने इन्द्र को श्राप दे दिया, “मेरा अनादर करने का तुम्हारा दुस्साहस...
तुम्हारी शक्ति ने तुम्हारी मति भ्रमित कर दी है।
मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि जिस ओहदे और प्रतिष्ठा पर तुम्हें घमंड है वह सब नष्ट हो जाएगा।”
सभी देवतागण साथ मिलकर इन्द्र की शक्ति
और प्रतिष्ठा के लिए विष्णु भगवान के पास गए।
विष्णु भगवान ने कहा, “असुरों की सहायता से समुद्र मंथन करो।
मंथन से तुम्हें अमृत मिलेगा और उसके पान से तुम्हारी शक्ति वापस लौट आएगी।”
फलतः
देवताओं ने असुरों को सहायता के लिए बुलाया।
मंदार पर्वत को मथानी तथा दिव्य सर्प वासुकी को रस्सी बनाकर देवताओं तथा
असुरों ने मिलकर क्षीर सागर का मंथन किया।
फलतः उन्हें अमृत प्राप्त हुआ।