महाव्रस नामक राज्य पर जनश्रुति नामक दयालु राजा का राज था।
एक दिन वह अपने छज्जे पर विश्राम कर रहा था।
तभी उसने दो हंसों को बात करते सुना।
"जनश्रुति की भाँति विवेकी और दयालु कोई दूसरा नहीं है..."
"हुँह, मेरी समझ से वह गाड़ी चालक रैक्व से अधिक ज्ञानी और योग्य नहीं है...।"
जनश्रुति ने सोचा, “यह रैक्व कौन है?
हूँऽऽ... मुझे अवश्य इससे मिलना चाहिए।”
जनश्रुति ने अपने आदमियों को रैक्व को ढूँढने भेजा।
काफ़ी ढूँढने के बाद उन्हें रैक्व मैले फटे कपड़ों में, मिट्टी की कुटिया के पास,
अपनी गाड़ी के नीचे बैठा एक गाँव में मिला।
आदमियों ने सारी बात राजा को बताई।
राजा ढेर सारा धन लेकर रैक्व से मिलने गए।
रैक्व का अभिवादन कर राजा ने कहा, "हे महात्मा ! कृपया
मुझे शिष्य बनाकर आप परम सत्य का ज्ञान मुझे दें।
" रैक्व ने कहा, “राजन्, आप जिस ज्ञान को प्राप्त करना चाहते हैं
उसके बदले में ये आपकी लायी हुई सारी वस्तुएँ व्यर्थ हैं।"
अपने घुटनों पर बैठकर राजा ने रैक्व से प्रार्थना की, “ श्रीमान्, मुझे क्षमा करें...
कृपया मुझे अपना शिष्य बनाकर ब्रह्मज्ञान का उपदेश दें।"
रैक्व ने कहा, “हे राजन्! बहुमूल्य उपहार आपके अहं को दर्शाता है।
जब आप अपने अहंकार और लालसाओं को त्याग देते हैं तथा
अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करते हैं तब आप को आंतरिक आत्मा का आभास होगा और वही आपको परम सत्य तक ले जाएगा।"
ज्ञान के इस प्रकाश से प्रसन्न होकर राजा ने गाँव का नाम बदलकर “रैक्वपर्ण” रख दिया।