ऋषि याज्ञवलक्य की दो पत्नियाँ थीं- एक, मित्री ऋषि की पुत्री मैत्रेयी और दूसरी, कात्यायनी।
ऋषि याज्ञवलक्य ने सांसारिक सुखों का परित्याग का निर्णय लिया।
उन्होंने अपनी संपत्ति को दो बराबर भागों में, दोनों पनियों के लिए बाँट दिया।
कात्यायनी ने तो प्रसन्नतापूर्वक उसे स्वीकार कर लिया, पर मैत्रेयी ने उनसे पूछा,
“प्रभु, क्या आपको यह लगता है कि इस धन से मुझे मोक्ष की प्राप्ति होगी?
मैं तो बस आपसे आपके आध्यात्मिक ज्ञान का छोटा-सा हिस्सा चाहती हूँ।"
मैत्रेयी से प्रभावित याज्ञवलक्य ने कहा, “तुम ठीक कह रही हो...
यदि ऐसा है तो मेरे ज्ञान को बाँटने चलो..."
इस प्रकार मैत्रेयी को साथ लेकर याज्ञवलक्य वन की ओर चले गए।