कठोर तपस्या करके वृत्रासुर नामक असुर ने अजेय तथा किसी भी शस्त्र से न मारे जाने का वरदान प्राप्त कर लिया था।
फलत: वह निरंकुश हो गया। वह देवताओं तथा धरती के लोगों को भी परेशान करने लगा।
एक बार तो उसने इन्द्रलोक जीतकर इन्द्रदेव को बाहर निकाल दिया था।
इन्द्र, विष्णु के पास गए।
विष्णु ने कहा, "वज्र से बने हुए शस्त्र से ही वृत्रासुर का अंत संभव है...।
दधीची को शिव की कठोर तपस्या से वर प्राप्त है..
. उन्हीं की हड्डियों से ऐसा शस्त्र बनना संभव है...
तुम दधीची के पास जाओ।”
विष्णु के निर्देशानुसार इन्द्र अन्य देवताओं के साथ ऋषि दधीची के पास गए। सहमत होते हुए दधीची ने कहा,
“मैं अपने जीवन का बलिदान दूँगा पर मृत्यु से पहले मैं सभी पवित्र नदियों तक जाना चाहता हूँ..."
दधीची की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए इन्द्र ने सभी पवित्र नदियों का जल नैमिषारण्य में मँगवाया।
दधीची तपस्यारत हो गए और फिर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
देवताओं ने उनकी रीढ़ की हड्डी से वज्रायुध बनाया और उसी से वृत्रासुर का अंत हुआ।
इन्द्र को उनकी गद्दी वापस मिल गई।