चरवाहा सत्यकाम अत्यंत जिज्ञासु प्रवृत्ति का था।
वह ज्ञान-प्राप्ति की इच्छा
से गौतम ऋषि के पास गया। गौतम ऋषि ने उससे कहा, में जाओ।
वहाँ से चार सौ गाय और बैल लेकर चराने के लिए घने “वत्स, गौशाले जंगल में ले जाओ...
जब वे एक हज़ार हो जाएँ तभी वापस आना...।
” सत्यकाम ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
वन में अपने चारों ओर पेड़-पौधे, नदियाँ, पशु-पक्षी, सूर्य-चन्द्र, जो भी वह देखता
उसी से उसे मानो ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त होता ।
जंगल में गाय और बैल हरा चारा खाकर पुष्ट होने लगे। धीरे-धीरे उनकी संख्या भी बढ़ने लगी।
कई वर्षों बाद पशुओं की संख्या हज़ार होने पर वह वापस लौटा।
उसने ऋषि से कहा, “गुरु जी, वन में समस्त जीव-जन्तु और प्रकृति से मैंने ज्ञान प्राप्त किया है
पर आप जैसे गुरु से ज्ञान प्राप्त किए बिना वह ज्ञान कभी पूर्ण नहीं होगा।
कृपया मुझे अपना शिष्य स्वीकार करें और मुझे ब्रह्म का ज्ञान प्रदान करें।
" सत्यकाम के ज्ञान की पिपासा
सच्ची जानकर गौतम ऋषि ने प्रसन्नतापूर्वक उसे अपना शिष्य स्वीकार कर लिया।