ज्ञानी अश्वपति

एक समय की बात है... सत्ययज्ञ, बुडिल,

प्राचीनशाल, जन और इन्द्रद्युम्न नामक पाँच ऋषि वेदों में प्रवीण थे।

एक दिन वे पाँचों साथ बैठकर परम सत्य पर चर्चा कर रहे थे।

तभी उन्हें यह भान हुआ कि उनका ज्ञान पर्याप्त नहीं है।

आरुणि ऋषि की सलाह पर वे केकय के राजा अश्वपति के पास ज्ञान प्राप्ति के लिए गए।

अश्वपति ने कहा, “हे महान् ऋषियों! आप लोग यह समझें कि हम सभी में वैश्वानर आत्मा है।

यह सत्य है जिसे हमें अनुभव करने की आवश्यकता है।

जिस भी रूप को आप आत्मा समझते हैं वह वैश्वानर आत्मा का अभिन्न अंग है।

तब अश्वपति ने उनसे पूछा कि वे किस प्रकार उपासना करते हैं।

उन्हें कई प्रकार के उत्तर मिले, जैसे उन्होंने बताया कि वे स्वर्ग, सूर्य, वायु, आकाश, जल और पृथ्वी की उपासना करते थे।

यह सब जानकर अश्वपति ने उनसे कहा, “हे श्रद्धेय, ज्ञान प्राप्ति के इच्छुक !

आपसे चर्चा कर मैंने यह समझा है कि आप सब आत्मा या ब्रह्म के एक-एक अंश की उपासना कर रहे हैं

उसका समष्टि रूप ही वैश्वानर आत्मा है।"

इस प्रकार ज्ञान प्राप्ति कर ऋषियों ने राजा का आभार व्यक्त किया और वापस लौट आए।