असुरों को हराने के बाद देवताओं ने अपनी शेखी बघारनी प्रारम्भ कर दी,
“हम सर्वाधिक शक्तिशाली हैं।
" ब्रह्मा जी ने सोचा, “इनका गर्व कुछ अधिक ही बढ़ गया है।
अब इन्हें यह पाठ पढ़ाना ही पड़ेगा कि ब्रह्मा ही सर्वाधिक शक्तिशाली है...।"
एक यक्ष के रूप में वे देवताओं के समक्ष प्रकट हुए।
उन्हें देख सबके बीच खुसुर-फुसुर होने लगी, “कैसी चमक है?
कौन है यह?" अग्नि ने आगे बढ़कर पूछा, “तुम कौन हो?”
यक्ष ने अग्नि से अपना परिचय देने को कहा।
अग्नि ने कहा, “मैं अग्नि हूँ, मैं कहीं भी, कुछ भी, जला सकता हूँ।”
“ठीक है, इस घास को जलाओ..." यक्ष ने कहा।
अग्नि ने बहुत प्रयत्न किया पर अग्नि की सारी चेष्टा व्यर्थ गई।
तब वायु देव ने अत्यंत गर्व से कहा कि धरती पर कुछ भी हो मैं एक झटके से उड़ा सकता हूँ।
यक्ष ने एक पुआल को सामने रखकर उसे उड़ाने के लिए कहा।
वायु ने उसे उड़ाने का हर संभव प्रयास किया अपनी पूरी शक्ति लगा दी पर असफल रहे।
तब इन्द्र यक्ष के पास गए। वहाँ उन्होंने एक सुंदर स्त्री को देखा। वह आध्यात्मिक
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ज्ञान की देवी उमा थीं। उन्होंने कहा, "वह यक्ष स्वयं ब्रह्मा थे,
जिन्होंने तुम्हें जीत दिलाई थी” अपने घमंड और अभिमान पर देवताओं को बहुत शर्मिंदगी हुई।
उनकी गर्दन शर्म से नीची हो गई।