एक बार देवताओं ने विष्णु भगवान से जाकर शिकायत की,
“ब्रह्मा की आज्ञा का उल्लंघन कर असुरों ने यज्ञ का हमारा हिस्सा भी ले लिया है...
शीघ्र ही वे हमसे अधिक शक्तिशाली हो जाएँगे।”
विष्णु भगवान ने तुरंत ही अपने शरीर से मायामोह की उत्पत्ति की और उसे निर्देश दिया,
“जाओ, असुरों के मन में भ्रांति उत्पन्न करो।”
ध्यानस्थ असुरों के पास जाकर मायामोह ने पूछा, “तुम सब तपस्या क्यों कर रहे हो?"
असुरों ने उत्तर दिया, "वेदों में वर्णित मोक्ष प्राप्ति के लिए...'
“फिर तुम लोगों को पशु-बलि बंद कर देनी चाहिए...।
देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करना भी मूर्खता है...
यज्ञ के लिए पशु बलि से तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी यह भी मूर्खता भरी सोच है...।”
मायामोह की बातों ने असुरों को उलझा दिया।
उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि तपस्या तथा वेदों के मार्ग पर चलने का कोई लाभ नहीं है।
इस प्रकार धर्म के पथ से हटकर वे कमज़ोर हो गए और देवताओं ने उन्हें हरा दिया।