राजा पृथु ने ऋषि गृतसमाद को एक भव्य यज्ञ का आयोजन करने के लिए कहा,
जिससे वे इन्द्र का आह्वान कर उनका आशीर्वाद ले सकें।
यह समाचार असुरों तक पहुँचा।
असुर यज्ञ की सम्पन्नता नहीं चाहते थे।
उन्होंने यज्ञ में विघ्न डालकर इन्द्र
को ही उठा ले जाने का सोचा। ऋषि को आस-पास असुरों के
यज्ञ होते समय गृतसमाद होने का पता चल गया था।
उन्होंने मन में सोचा, “मैं उन्हें चकमा देकर उनकी योजना असफल कर दूँगा।"
गृतसमाद ने इन्द्र का रूप धरा और असुरों के सामने प्रकट हो गए।
असुरों ने जब उन्हें देख लिया तो उन्होंने भागना शुरु कर दिया।
असुरों को अपने पीछे भगाते हुए वे बहुत दूर तक ले गए।
जब उन्हें लगा कि यज्ञ अब समाप्त हो गया होगा तब वह रुक गए।
वापस अपने रूप में आकर उन्होंने असुरों का सामना किया और अपना परिचय दिया।
फिर वे असुरों को लेकर इन्द्र के पास गए।
इधर तब तक यज्ञ समाप्त हो चुका था।
असुर इन्द्र का कुछ अहित कर पाते उससे पहले ही इन्द्र ने अपने वज्रायुध से उनका अंत कर दिया।