दुर्वासा ऋषि इन्द्र से मिलने गए।
अपने साथ लायी हुई माला उन्होंने इन्द्र को पहना दी जिसे इन्द्र ने अपने हाथी एरावत के गले में डाल दिया।
अपमानित अनुभव कर ऋषि दुर्वासा ने देवताओं को श्राप दे दिया कि
उनकी शक्ति समाप्त हो जाएगी और उन्हें देवलोक छोड़ना पड़ेगा।
घबराकर इन्द्र सभी देवताओं के साथ विष्णु भगवान की शरण में गए।
विष्णु भगवान ने शक्ति वापस पाने के लिए देवताओं को सुझाया,
“मंदार पर्वत को मथानी और वासुकी को रस्सी बनाकर क्षीर सागर का मंथर करो, तुम्हें अमृत की प्राप्ति होगी।
उसका पान करने से दुर्वासा ऋषि के श्राप से मुक्ति मिल जाएगी और सारी शक्ति वापस आ जाएगी।
सागर मंथन असुरों की सहायता से ही संभव है, अतः चतुरतापूर्वक उन्हें भी साथ लो...।”
फलतः देवताओं ने असुरों के सहयोग से मिलकर सागर मंथन किया।
मंदार पर्वत अपनी जगह स्थिर नहीं रह पा रहा था। देवताओं
ने पुनः विष्णु भगवान से सहायता माँगी।
विष्णु भगवान ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा,
“चिंता मत करें, मैं कूर्म अवतार लेकर अपनी पीठ पर मंदार पर्वत को संभालूँगा..."
इस प्रकार विष्णु भगवान ने कूर्म अवतार लिया।
सागर के भीतर उनकी कठोर पीठ पर मंदार पर्वत को रखा गया जो अपनी जगह स्थिर रहा और मंथन संभव हो सका।