वराह अवतार

एक बार वैकुण्ठ के द्वारपाल जय और विजय को ब्रह्मा जी के पुत्रों ने

श्राप दे दिया फलतः हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप नामक असुरों के रूप में उन्होंने जन्म लिया।

हिरण्याक्ष, ब्रह्मा जी का परम भक्त था।

उसने कठोर तपस्या करके अमर होने का वरदान प्राप्त कर लिया था।

तीनों लोकों पर उसका शासन हो गया था।

नारद की चुनौती पाकर वह धरती को लेकर समुद्र के नीचे पाताल लोक में चला गया।

देवतागण घबराकर विष्णु के पास गए।

अमरता का वरदान माँगते समय हिरण्याक्ष ने यह नहीं कहा था कि उसकी मृत्यु किसी जानवर से नहीं होनी चाहिए।

इसी बात का लाभ उठाते हुए विष्णु भगवान ने वराह (जंगली सूअर) का अवतार लिया और हिरण्याक्ष का मुकाबला किया।

एक लम्बे युद्ध के पश्चात् वराह हिरण्याक्ष को मारने में सफल हुआ दिया और

धरती माँ को समुद्र से ऊपर लाकर उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया।