हिरण्यकश्यप, विष्णु भगवान को मारना चाहता था
क्योंकि उन्होंने उसके भाई हिरण्याक्ष को मार डाला था।
उसका विश्वास था कि ऐसा तभी संभव है जब वह अमर हो जाए।
उसने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से प्रार्थना की, “हे ब्रह्मदेव!
कृपया मुझे अमर कर दें, मुझे ऐसा वर दें कि मैं न तो किसी मनुष्य या पशु से,
न घर के भीतर या बाहर, न दिन में या न रात में, न सजीव या निर्जीव हथियार से और न ही धरती या अंतरिक्ष में मरूँ।"
ब्रह्मा जी ने आशीर्वाद दे दिया।
हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में घोषणा करवा दी कि, “मैं ही भगवान हूँ,
अतः आज से आप सभी मेरी ही पूजा करेंगे।"
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था।
वह सदा ‘ओऽम् नमो नारायण' का जाप करता रहता था।
अपने पुत्र से चिढ़कर हिरण्यकश्यप ने उसे मारने का प्रयत्न किया,
किन्तु विष्णु भगवान उसे सदा बचा देते थे।
एक दिन शाम के समय हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद से पूछा, “बताओ तुम्हारा भगवान कहाँ है?" विनम्रतापूर्वक प्रह्लाद ने
कहा, “पिता जी, वह सभी जगह हैं..." “क्या वह इस खम्भे में है?"
“जी!” “देखूँ ज़रा कहाँ है....।” यह कहकर हिरण्यकश्यप ने खम्भे पर अपनी गदा से ज़ोर से प्रहार किया।
खंभे से विष्णु के अवतार नृसिंह देव प्रकट हुए जिनका आधा शरीर मानव का था और आधा शेर का ।
हिरण्यकश्यप को उठाकर वे ड्योढ़ी पर गए,
अपनी जांघ पर रखा और अपने तेज नाखूनों से उसका पेट फाड़ डाला।