नलकुबेर और मणिग्रीव धन के देवता कुबेर के पुत्र थे।
दुलार तथा धन के मद में वे बिगड़ गए थे तथा अनैतिक कार्यों में रत रहते थे।
नशे में धुत दोनों एक बार एक सरोवर में कन्याओं के साथ
नग्न अवस्था में जल क्रीड़ा में रत थे।
उधर से जाते हुए नारद को उन्होंने देखकर भी
नहीं देखा। उन्हें इस अवस्था में देखकर नारद ने उन्हें सबक सिखाने का निश्चय किया।
उन्होंने दोनों से कहा, “अरे!, कुबेर के अनुत्तरदायी बालकों, तुम इतने मदहोश हो कि तुम्हें मेरे आने का पता भी नहीं चला...
" दोनों भाइयों ने अट्टहास करते हुए नारद की खिल्ली उड़ाई, "हमें आपसे क्या ?
हमारे पास इतनी संपत्ति है कि पूरा विश्व हमारी मुट्ठी में है...।"
उनके इस व्यवहार से रुष्ट नारद ने उन्हें श्राप दिया, “धन का मद तुम्हारे सिर चढ़कर बोल रहा है।
उचित - अनुचित का ज्ञान समाप्त हो है।
चुका
अपने व्यवहार का दण्ड भोगने के लिए तैयार हो जाओ... मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम दोनों सौ वर्षों तक वृक्ष बन जाओगे।"
दोनों भाई तभी श्राप के प्रभाव से वृक्ष बन गए।
उन्होंने नारद से श्राप वापस लेने की प्रार्थना की।
नारद ने कहा, " जब भगवान विष्णु, कृष्ण रूप में अवतार लेंगे तभी तुम्हें इस श्राप से मुक्ति मिलेगी।"
बाद में कृष्ण ने इन्हीं दोनों को मुक्ति दिलाई थी।