परशुराम का जन्म महर्षि जमदग्नि के घर ब्राह्मण कुल में हुआ था।
फिर भी उनमें क्षत्रियों के सभी गुण थे।
वे अत्यंत बहादुर, शक्तिशाली और आक्रामक थे।
एक दिन हहैया राज्य का राजा कार्तवीर्य अर्जन जमदग्नि ऋषि की कुटिया के पास से गुजरा।
ऋषि ने राजा और उनके अनुयायियों को शानदार स्वादिष्ट भोजन कराया।
इस आतिथ्य सत्कार से राजा अचंभित था।
राजा को पता चला कि ऋषि के पास दिव्य गौ कामधेनु है, जो सभी को भोजन देने में सक्षम है।
राजा ने जमदग्नि से गाय माँगी पर उन्होंने उसे देने से मना कर दिया।
इसे अपना अपमान समझकर राजा ने अपने आदमियों को कामधेनु गाय को बलपूर्वक ले जाने की आज्ञा दी।
सारी घटना जानकर क्रोधित परशुराम कार्तवीर्य के महल में गए।
दोनों में भयंकर युद्ध हुआ और राजा मारा गया।
जमदग्नि को जब इस बात का पता लगा तब उन्होंने परशुराम को पापों के प्रायश्चित्त के लिए तपस्या करने के लिए कहा।
परशुराम के तपस्या के लिए जाने पर कार्तवीर्य के पुत्रों ने जाकर जमदग्नि को मार डाला।
यह सब जानकर क्रोधित परशुराम ने संपूर्ण क्षत्रिय जाति को नष्ट करने का प्रण ले लिया।
इक्कीस वर्षों तक वे लड़ते रहे और क्षत्रियों का विनाश करते रहे।