त्रेता युग में विष्णु भगवान के राम अवतार के पश्चात् द्वापर युग
में पुनः
असुरों का उत्पात बढ़ गया था।
ये असुर ब्रह्मा और शिव के अनन्य भक्त थे।
कठोर तपस्या से वरदान पाकर वे निरंकुश और क्रूर हो गए थे।
उन्होंने चारों ओर उत्पात मचाना प्रारम्भ कर दिया था।
कंस तथा अन्य क्रूर राजाओं के उत्पीड़न से धरती माँ ने ब्रह्मा जी के साथ जाकर विष्णु भगवान से प्रार्थना की।
विष्णु भगवान ने कहा, “अब सम्भवतः फिर से मेरे अवतार लेने का समय आ गया है।
" विष्णु भगवान ने शेषनाग से कहा, 'जब मैं राम था तब आपने लक्ष्मण के रूप में मेरी बहुत सेवा की थी।
अब सेवा करने की मेरी बारी है। आप मेरे बड़े भाई के रूप में अवतार लेंगे और मैं कृष्ण बनूँगा।”
इस प्रकार देवकी ने सातवें गर्भ के रूप में बलराम को धारण किया।
गर्भ के छठे माह में विष्णु भगवान ने योगमाया से कहा, “देवी, गोकुल में रह
रही वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ में देवकी का गर्भ डाल दें।”
योगमाया ने वैसा ही किया और बलराम का जन्म हुआ। बाद में देवकी
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के आठवें गर्भ से कृष्ण ने बलराम के छोटे भाई के रूप में जन्म लिया।
दोनों भाइयों ने मिलकर बहुत सारे असुरों का विनाश किया।
अपनी दिव्यता के कारण बलराम के पास गजब की शक्ति थी।
उन्हें बालभद्र, बलदेव और हलधर भी कहा जाता है।