कृष्णावतार का उद्देश्य

कंस अपने पिता उग्रसेन को राजगद्दी से हटाकर मथुरा का राजा बन बैठा था।

उसकी निरंकुशता से न केवल मथुरावासी वरन् सभी देवता भी परेशान थे।

देवताओं ने विष्णु भगवान से जाकर सहायता माँगी।

तब स्वयं विष्णु भगवान ने कृष्ण के रूप में नौवाँ अवतार लिया।

'कृष्ण' संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है ‘श्याम’, ‘अंधकार'।

साँवले होने के कारण कृष्ण को यह नाम मिला था।

कंस की बहन देवकी और वासुदेव के विवाह के बाद ही एक आकाशवाणी

के द्वारा उसे पता लग गया था कि उसकी मृत्यु देवकी के पुत्र से होगी।

जब गोकुल में पल रहे, देवकी की आठवीं संतान, कृष्ण का पता कंस को चला

तो वह एक के बाद एक असुर को उसे मारने के लिए गोकुल में भेजने लगा।

पर कृष्ण ने बाल्यावस्था में ही पूतना, चक्रासुर, तृणावर्त एक-एक कर सभी को मार डाला था।

सही समय आने पर कृष्ण ने कंस का भी वध कर दिया था।

महाभारत युद्ध के समय, अर्जुन का सारथी बनकर कृष्ण ने उसे भगवद्गीता के रूप में जीवन का संदेश दिया था।

वस्तुतः कृष्ण के अवतार का उद्देश्य साधुओं की रक्षा, दुष्टों का विनाश, अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना था।