पाण्डवों ने अपना राज्य अपने पौत्र परीक्षित को सौंप दिया और स्वर्ग की ओर चले गए।
परीक्षित को कलि (कलयुग) के आने का पता चला तो वह उससे लड़ने गया।
रास्ते में उसने एक शूद्र को गाय और बैल को मारते देखा।
उसने जाकर जानवरों को बचाया और फिर उससे पूछा, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इन जानवरों को मारने की...
तुम्हें ही मार दिया जाना चाहिए।
" शूद्र, परीक्षित के पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाया, “हे महान् राजन्!
मैं कलि हूँ।
कलियुग की शुरुआत हो चुकी है, मुझे द्वापर युग के बाद आना ही होगा...
यही प्रकृति का नियम है, अत: आप कृपा मुझे मत रोकें।"
परीक्षित ने उससे कहा, “तुम आ सकते हो पर वहीं पर जहाँ जुआ,
शराबखोरी, अनैतिकता, व्याभिचार, पशुवध आदि हो।”
इस प्रकार कलि (कलयुग) प्रविष्ट हुआ।
विश्व में मानव नैतिकता भूलने लगा और अनैतिकता का बोलबाला होने लगा।
परेशान देवताओं ने विष्णु से पुनः सहायता की प्रार्थना की।
विष्णु ने कहा, “मैं कलि से युद्ध कर प्रलय और
महाप्रलय के बाद पुन: धर्म की स्थापना करुँगा।
तत्पश्चात्! ‘सत्युग', 'धर्म का युग' आयेगा।”