वृंदावन वासी इन्द्र भगवान को प्रसन्न करने के लिए प्रतिवर्ष धूम-धाम से महान् यज्ञ किया करते थे।
उनका विश्वास था कि यज्ञ करने से उनके राज्य में वर्षा और समृद्धि आएगी।
इस यज्ञ के लिए वृंदावन में काफ़ी अधिक मात्रा में घी लगता था।
एक बार कृष्ण ने लोगों से पूछा, “इन्द्र की पूजा क्यों की जाती है?
बारिश के बादलों को रोककर वर्षा देने में तो गोवर्धन पर्वत का हाथ है...
हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए”
कृष्ण की बात मानकर वृंदावनवासियों ने उस वर्ष इन्द्र की पूजा नहीं की।
जिससे इन्द्र रुष्ट हो गए और परिणामस्वरूप वृंदावन में खूब बारिश हुई और बाढ़ आ गई।
वृंदावन वासी घबरा उठे। सभी त्राहि-त्राहि करने लगे।
गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उँगली पर छतरी की तरह उठाकर वृंदावनवासियों को कृष्ण ने आश्रय दिया।
इन्द्र ने अपना पूरा ज़ोर लगाया।
सात दिनों तक लगा
तार बारिश होती रही।
अंत में इन्द्र हार गए। उन्हें तब यह समझ आया कि यह बालक साधारण बालक न होकर विष्णु भगवान का अवतार है।
इन्द्र कृष्ण की शरण में आए और उन्होंने अपने कृत्य के लिए क्षमा याचना की।