संदीपनी ऋषि के पास कृष्ण और बलराम की शिक्षा पूरी हुई थी।
शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने संदीपनी ऋषि से निवेदन किया,
“गुरुदेव! हम आपको क्या गुरुदक्षिणा दें?"
संदीपनी ने कहा, "कल बताऊँगा।"
उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा, "मेरा अहोभाग्य जो मैं उनका शिक्षक बना।
वे गुरुदक्षिणा देना चाहते हैं... क्या माँगूँ?" पत्नी ने कहा, "वे साधारण बालक नहीं हैं।
समुद्र में डूब गए अपने पुत्र को वापस लाने के लिए कहिए।"
यह बात संदीपनी ने कृष्ण और बलराम से कही।
समुद्र के पास जाकर कृष्ण ने कहा, “हे समुद्रदेव! हमारे गुरु का पुत्र प्रभास आपके पास है।
कृपया उसे लौटा दें।” समुद्रदेव ने कहा, “हे प्रभु! मेरे पास प्रभास नहीं है।
सम्भवतः वह पाञ्चजन्य नामक असुर के पास हो जो मेरे भीतर एक शंख के रूप में रहता है।"
कृष्ण समुद्र के भीतर गए।
पाञ्चजन्य को मारा पर प्रभास वहाँ नहीं मिला।
फिर कृष्ण सीधे यमलोक गए और यम से उन्होंने कहा, "मेरे गुरु का एकमात्र
पुत्र प्रभास मर गया है। उसके कर्मों के आधार पर आप उसे यहाँ लाए हैं।
आप मुझे, उसे लौटा दें।"
यम ने प्रभास को लौटा दिया।
संदीपनी और उनकी पत्नी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा।