सुदामा, कृष्ण का बचपन का मित्र था।
दोनों ने संदीपनी ऋषि के पास एक साथ शिक्षा ली थी।
उसका जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
आगे चलकर कृष्ण द्वारका के राजा बने, पर सुदामा गरीब ब्राह्मण ही
रहा। एक बार सुदामा की पत्नी सुशीला ने अपने पति से कहा, "आप कृष्ण से आर्थिक
सहायता क्यों नहीं माँगते हैं?"
सुदामा मान गया और कृष्ण से मिलने द्वारका
चल पड़ा। कृष्ण उसे आता देख भागकर स्वयं द्वार पर उससे मिलने गए।
आदर के साथ उसे अपने सिंहासन पर बैठाया, उसके चरण धोए, नए वस्त्र पहनाए और भोजन करवाया।
यहाँ तक कि स्वयं कृष्ण ने उसे पंखा झला।
अवसर देखकर कृष्ण ने सुदामा से पूछा, "मित्र भाभी ने अवश्य मेरे लिए कुछ भेजा होगा... "
सुशीला का दिया हुआ मुट्ठी भर चावल सुदामा की पोटली में था।
सुदामा, कृष्ण की बात सुनकर हैरान रह गया।
उसने झेंपते हुए वह चावल की पोटली कृष्ण की ओर बढ़ा दी।
बड़े ही प्रेम से कृष्ण ने वे चावल खाए।
सुदामा जब लौटकर वापस अपने गाँव आया तब वह यह देख हैरान रह गया कि
उसकी झोंपड़ी एक महल में बदल चुकी थी।
यह सब कृष्ण की कृपा का ही फल था।