स्यमंतक मणि

कृष्ण ने कंस का वध कर उग्रसेन को मथुरा की गद्दी पर बिठा दिया था।

नाराज़ जरासंध कंस की मृत्यु का बदला कृष्ण से लेने के लिए बार-बार विशाल सेना के साथ

मथुरा पर हमला करता रहता था।

युद्ध से तंग आकर कृष्ण मथुरावासियों के साथ द्वारका चले गए थे और

वहीं अपना राज्य बनाकर रहने लगे थे।

एक बार कृष्ण ने सत्यजित के पास स्यमंतक मणि देखा।

मणि प्रतिदिन आठ भाग सोना देती थी। लोगों की भलाई के लिए कृष्ण ने वह मणि माँगी।

सत्यजित ने मणि देने से मना कर दिया।

एक दिन सत्यजित का भाई प्रसेनजित उस मणि को गले में पहनकर शिकार खेलने गया।

शिकार करते समय प्रसेनजित की रहस्यपूर्ण ढंग से हो गई थी।

उसके गले का स्यमंतक मणि भी गायब था।

प्रसेनजित मृत्यु के परिवार ने प्रसेनजित को मारकर मणि ले लेने का दोष कृष्ण पर लगाया।

कृष्ण ने यह सिद्ध कर दिखाया कि एक शेर ने प्रसेनजित को

मारा था और एक भालू ने वह मणि ले ली थी।

प्रसेनजित के परिवार को कृष्ण पर इस दोषारोपण का बहुत दुःख हुआ।

अपनी भूल को सुधारने के लिए उसके भाई सत्यजित ने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह कृष्ण से कर दिया

जिससे यादव वंश में कृष्ण की पक्की पहचान हो गई।