शाल्व चेडि नरेश शिशुपाल का प्रिय मित्र था।
कृष्ण के हाथों शिशुपाल के मारे जाने का समाचार पाकर उसे कृष्ण के प्रति बहुत रोष हुआ।
कृष्ण को हराना असम्भव होने के कारण उसने शिव भगवान की कठोर तपस्या की।
शिव के प्रसन्न होने पर शाल्व ने उनसे कहा, “हे प्रभु!
कृष्ण से चतुरतापूर्वक युद्ध करने के लिए मुझे आकाश में उड़ने वाला यान दें।"
शिव ने उसे सोम विमान दिया, जो आकाश में उड़ता था।
शाल्व मायावी विद्या में चतुर था।
उसने कृष्ण की अनुपस्थिति में द्वारका पर चढ़ाई कर दी और बहुत नुकसान किया।
वापस आने पर कृष्ण ने टूटी-फूटी द्वारका देखी।
वह शाल्व से लड़ने चल पड़े।
शाल्व और कृष्ण भयंकर युद्ध हुआ।
शाल्व ने माया से वासुदेव को रचकर उनका सिर काट डाला।
पल भर को कृष्ण ठिठके, पर उसकी असलियत जानकर उन्होंने अपने
सुदर्शन चक्र से शाल्व का सिर काट डाला।