एक दिन कंस ने अपने मंत्री अक्रूर से कहा, “जाओ और जाकर मथुरा में
होने वाले समारोह के लिए कृष्ण और बलराम को बुला लाओ।”
कृष्ण भक्त अक्रूर प्रसन्न हो गए पर जब उन्हें कंस की कृष्ण को मारने की योजना का पता चला
तो वे चिंतित हो उठे। नंद के घर पहुँचकर उन्होंने कृष्ण को समारोह में आने का निमंत्रण दिया और फिर कंस की मंशा भी बताई।
चिंतित अक्रूर से कृष्ण ने हँसते हुए कहा, 'अक्रूर जी, आप चिंता न करें...
हम लोग मथुरा अवश्य आएँगे...।”
दोनों भाई अगले दिन अक्रूर के साथ मथुरा के लिए रवाना हुए।
रास्ते में वे यमुना नदी के किनारे रुके।
अक्रूर नदी में स्नान करने गए।
पानी में डुबकी लगाते ही अक्रूर ने कृष्ण और बलराम को अपने सामने सिंहासन पर बैठे देखा।
हड़बड़ाकर वह पानी से बाहर निकले पर वे दोनों तो बाहर रथ पर बैठे थे।
अक्रूर दोबारा डुबकी लगाने लगे।
इस बार उन्हें भीतर विष्णु भगवान के दिव्य दर्शन हुए।
आँखों से अश्रु बह चले... उन्होंने इस दिव्य दर्शन के लिए प्रभु का धन्यवाद किया।
पानी से बाहर आने पर हकबकाए अक्रूर जी से कृष्ण ने पूछा, “क्या हुआ अक्रूर जी ?
क्यों परेशान हैं?"
हाथ जोड़कर अक्रूर ने कहा, “हे प्रभु!
मुझपर सदा अपनी दया दृष्टि बनाए रखें, मुझे अपनी शरण में ले लें...।”