पौण्ड्रक का गर्व

बहुत समय पहले की बात है... पुण्ड्र राज्य में पौण्ड्रक का शासन था।

उसने शिव की कठोर तपस्या करके प्रार्थना की, " हे भोलेनाथ !

मुझे वासुदेव का रूप दें... जिससे विष्णु की जगह सभी मेरी पूजा करें।

" शिव ने उसे मनचाहा वरदान दे दिया।

फलतः उसके चार हाथ, चक्र, गदा कमल और शंख हो गए।

उसके मुकुट पर एक मोर पंख भी हो गया।

उसके पिता का नाम वासुदेव था इसलिए वह स्वयं को वासुदेव कृष्ण कहा करता था।

यह सब होने के बाद पौण्ड्रक ने स्वयं को कृष्ण भगवान कहलाना शुरु कर दिया।

नारद को इस बात का पता चलने पर वह पौण्ड्रक के पास गए और बोले,

“तुम असली कृष्ण पर विजय प्राप्त किए बिना कभी भी वासुदेव नहीं हो सकते हो..."

यह सुनकर पौण्ड्रक ने कृष्ण को युद्ध की चुनौती दे दी।

बहुत समय तक कृष्ण उसकी हरकतों और बातों को नज़रअंदाज़ करते रहे।

हद से ज्यादा बात बढ़ने पर उन्होंने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली।

दोनों में ज़ोरदार युद्ध हुआ।

अंततः कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका अंत कर दिया

और उसके सिर को मुख्य द्वार पर लटकवा दिया।