जब पौण्ड्रक के पुत्र सुदक्षिण ने अपने पिता का सिर
मुख्य द्वार पर लटका देखा तब क्रोध में भरे हुए उसने घोषणा की
“कृष्ण, तुम जहाँ भी हो, तैयार रहो... मैं तुम्हें मिटाने आ रहा हूँ।"
फिर उसने शिव भगवान की आराधना की।
शिव भगवान ने कहा, “तुम उल्टे वेद मंत्रो से यज्ञ की तैयारी करो...
तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाएगी।” सुदक्षिण ने वैसा ही किया।
यज्ञ की अग्नि से कृत्य नामक एक भयंकर असुर निकला।
उसने सुदक्षिण से प्रार्थना की, “हे स्वामी!
मैं आपकी सेवा में उपस्थित हूँ... मुझे मेरा कार्य बतलाइए।"
"पूरी द्वारका जला डालो, कोई भी जीवित नहीं बचना चाहिए।"
कृत्य ने द्वारका को जलाना शुरु कर दिया।
घबराकर लोग इधर से उधर भागने लगे।
सभी आग और दैत्य से बचना चाहते थे।
उन्होंने कृष्ण को याद करने में ही भलाई समझी।
कृष्ण को पता लगा कि यह कार्य पौण्ड्रक पुत्र का है तब उन्होंने अपने दिव्य अस्त्रों से
कृत्य का वध कर दिया।
कृत्य के नष्ट होते ही चारों ओर लगने वाली आग भी बुझ गई।