जन्मेजय राजा परीक्षित का पुत्र था।
एक दिन उतंक नामक एक ब्राह्मण जन्मेजय के दरबार में आया।
उसका स्वागत कर राजा ने उसके आने का कारण पूछा।
उतंक ने कहा, “हे राजन्! मुझे आश्चर्य है कि अभी तक आपने तक्षक के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की है।
वह ही आपके पिता जैसे धार्मिक राजा की मृत्यु का कारण है...।”
उतंक ने बताया कि किस प्रकार तक्षक ने परीक्षित को उसके कर्मों की सज़ा के रूप में मारा था।
जन्मेजय गरजा, “मैं मृत्यु का बदला लूँगा...।"
उतंक ने कहा “जन्मेजय, यह इतना सरल नहीं है।
इन्द्र तक्षक के मित्र हैं। वह सदा उसकी रक्षा करते हैं।
सर्प यज्ञ करना ही एकमात्र उपाय है।”
जन्मेजय ने सर्प यज्ञ की व्यवस्था की और अपने अधिकारियों को, बलि के लिए, सभी सर्पों को लाने भेजा।
मुख्य पुजारी से बात कर यज्ञ की तैयारी की गई।
पुजारियों ने शक्तिशाली मंत्रोच्चार किया।
तक्षक मंत्र के प्रभाव के कारण आग में गिरने ही वाला था पर इन्द्र उसकी रक्षा कर रहे थे।
किन्तु ऐन वक्त पर मंत्र के प्रभाव से नागराज तक्षक हाथ से फिसल कर यज्ञ की अग्नि में जल ही गया।