अपनी प्रभुता स्थापित करने के लिए युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ करने का निश्चय किया।
कृष्ण ने कहा, “पहले जरासंध को हराकर अपनी शक्ति को सिद्ध करो।”
युधिष्ठिर, भीम और कृष्ण ब्राह्मण के वेष में जरासंध के पास गए और “हम तुमसे उससे कुछ माँगा।
जरासंध के राजी होने पर उन्होंने कहा, कुश्ती करना चाहते हैं।"
जरासंध उन्हें वचन दे चुका था।
वह उन्हें पहचान गया और भीम के साथ कुश्ती हुई।
कुश्ती में जरासंध और भीम दोनों ही बराबर के थे हार-जीत का निर्णय ही नहीं हो पा रहा था।
कृष्ण ने भीम से उसे दो भागों में बीच से फाड़ देने के लिए कहा।
भीम ने उसे फाड़कर दो भागों में फेंक दिया पर वह फिर से जुड़कर जीवित हो उठा।
ऐसा कई बार होने पर परेशान भीम ने कृष्ण की ओर देखा ।
कृष्ण ने एक तिनके को दो भागों में फाड़कर दोनों को उल्टी दिशा में फेंका।
इशारा समझकर भीम ने पुनः जरासंध को दो भागों में फाड़ा और दोनों भागों को उल्टी दिशा में फेंका।
उल्टी दिशा में होने के कारण दोनों भाग आपस में जुड़ नहीं पाए और जरासंध की मृत्यु हो गई।