हूहू एक गन्धर्व राजा थे।
वह स्वभाव से अत्यंत चपल थे।
उन्हें नई-नई शरारत सूझा करती थी।
एक दिन प्रातः अपने नित्य कर्म के लिए वह नदी पर गए।
उन्होंने देखा कि देवल ऋषि नदी के जल में खड़े होकर सूर्य देव की आराधना कर रहे थे।
उन्हें देवल ऋषि के साथ शरारत करने की सूझी।
वह चुपचाप पानी के भीतर गए और ऋषि के पैरों के पास जाकर उसे ज़ोर से खींचा।
देवल ऋषि चौंक गए।
हूहू को शरारत करते देखकर चिढ़ गए।
क्रोधित होते हुए उन्होंने हूहू को श्राप दिया, “मूर्ख व्यक्ति! तुमने मेरा अनादर करने के
साथ-साथ मेरी प्रार्थना में भी विघ्न डाला...
तुम्हारे इस दुस्साहस के लिए मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि अगले जन्म में तुम मगरमच्छ बनोगे।"
ऋषि के व्यवहार से हूहू डर गए।
अपनी भूल का अहसास कर उन्होंने देवल ऋषि से क्षमा माँगी, “हे ऋषिवर!
मेरे बचपने के लिए मुझे क्षमा कर दें।
मुझे श्राप मुक्त कर दें... बड़ी भूल हो गई।"
"वह तो मैं नहीं कर सकता पर इतना विश्वास दिलाता हूँ कि
मगरमच्छ के रूप से मुक्ति तुम्हें स्वयं विष्णु भगवान देंगे।”