गजेन्द्र का पूर्व जन्म

स्वयंभू मनु के वंशज राजा इन्द्रद्युम्न उच्च कोटि के आध्यात्मिक व्यक्ति थे।

वे विष्णु

भगवान के भक्त थे। वृद्ध होने पर वे अपना राज्य अपने पुत्रों को सौंपकर,

तपस्या करने मलय पर्वत पर चले गए।

एक बार जब वह ध्यानमग्न

थे तभी अगस्त्य ऋषि उनसे मिलने आए।

इन्द्रद्युम्न को ऋषि के आने का पता नहीं चला।

अगस्त्य ऋषि ने इसे अपना अपमान समझकर उन्हें श्राप दे दिया, “इन्द्रद्युम्न, तुम्हें अपनी तपस्या का इतना घमंड हो गया है

कि तुम अतिथि सत्कार भी भूल गए हो...

तुम हाथी बनकर जन्म लोगे..."

इन्द्रद्युम्न अगस्त्य ऋषि का बहुत आदर करते थे।

उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ।

उन्होंने श्राप स्वीकार करते हुए कहा, “हे ऋषिवर!

आपके आगमन का मुझे पता नहीं चला इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ...

मैं आपका श्राप स्वीकार करता हूँ...।”

उनकी विनम्रता देखकर अगस्त्य ऋषि ने उन्हें क्षमा करते हुए कहा,

“इन्द्रद्युम्न मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता हूँ पर

हाथियों के राजा गजेन्द्र के रूप में, अगले जन्म में तुम विष्णु भक्त होओगे।

विष्णु के दिव्य स्पर्श से तुम श्राप मुक्त हो जाओगे।"