पराशर, व्यास ऋषि के पिता तथा वशिष्ठ ऋषि के पौत्र थे।
एक बार की बात है- पराशर के पिता शक्तरी एक संकरा पुल पार कर रहे थे।
तभी दूसरी ओर से राजा कल्माष्पद भी उसी पुल पर आ गए।
शक्तरी ने आदेश दिया, “हेऽऽ... पीछे हटो! मुझे रास्ता दो... "
कल्माष्पद भी जिद्दी और घमंडी थे।
पीछे हटने से उन्होंने मना कर दिया।
क्रुद्ध शक्तरी ने तुरंत अंजुली में जल लेकर उसे श्राप दे दिया,
“तुम राक्षस बन जाओ!” कल्माष्पद तुरंत मानव-भक्षी असुर में परिवर्तित हो गए और शक्तरी को निगल लिया।
यह समाचार पाकर वशिष्ठ व्यथित हो उठे।
वे अपनी जीवन लीला समाप्त करना चाहते थे।
तभी आकाशवाणी ने उन्हें पराशर के लिए जीवित रहने के लिए कहा।
बड़े होने पर पराशर को अपने दादा वशिष्ठ से अपने पिता के विषय में पता चला।
क्रोधित होकर उसने कहा, "दादा जी! पूरी असुर जाति को समाप्त करने के लिए मैं एक यज्ञ करूँगा।"
वशिष्ठ ने उसे शांत करते हुए कहा, "नहीं पराशर,
शांत हो जाओ, अपने शत्रु को क्षमा करने की कला सीखो... अपने पिता की
तरह क्रोध को अपने ऊपर हावी मत होने दो...
असुरों को शांतिपूर्वक रहने दो और तुम भी शांतिपूर्वक रहो।"