अजेय सहस्त्रार्जुन

हहैया राजा कार्तवीर्य अर्जुन की शिक्षा-दीक्षा ऋषि दत्तात्रेय के पास हुई थी।

अत्यंत तीव्र बुद्धि का होने के कारण प्रसन्न होकर ऋषि ने उसे सहस्राबाहु का आशीर्वाद दिया था।

फलतः अर्जुन ‘सहस्रार्जुन' के नाम से जाना जाने लगा।

वह अजेय हो गया था।

उसने धरती पर पचासी हज़ार वर्षों तक शासन किया।

समय व्यतीत होने के साथ वह हठी और घमण्डी हो गया था।

एक बार वह अपनी पत्नियों के साथ नर्मदा नदी के किनारे गया।

नर्मदा में उस समय पानी कम था इसलिए अपनी हज़ार भुजाओं के प्रभाव से उसने नदी के बहाव को रोक दिया।

जिससे उसकी पत्नियाँ जल में क्रीड़ा कर सकें।

उसी समय रावण नदी के नीचे की ओर आया।

उसने सूखी नदी देखकर बालू का शिवलिंग बनाया और करने लगा।

इधर नदी से पत्नियों के बाहर आने पर सहस्रार्जुन ने पानी से अपने हाथ बाहर निकाले तो नदी का पानी पहले की तरह बहने लगा।

रावण का शिवलिंग बह गया।

क्रोध में आकर रावण गरजा, “कौन मेरी पूजा में बाधा डाल

रहा है?" सहस्रार्जुन ने सामने आकर कहा, “मैं हूँ... आओ, लड़ना चाहते हो?"

पलभर में सहस्रार्जुन ने रावण को दबोचा और अपने महल के कैदखाने में डाल दिया।

बाद में उसने अपने दादा पुलस्त्य मुनि के अनुरोध पर रावण को छोड़ा।

वस्तुतः पुलस्त्य मुनि ने रावण को दान में माँग लिया था।